अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -

नयी छंदमुक्त रचनाओं में-
ख्वाबों के मौसम
पहचान का रंग
मैं जीना चाहती हूँ
रंगरेज मौसम
रेत के घरौंदे

नये हाइकु-
धूप पंखुरी

नई रचनाओं में-
ताँका

हाइकु में-
सर्द दिन

माहिया में-
धूप छाँह सा मन

छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम

क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान

संकलन में-
वसंती हवा- फागुनी आँगन
          घरौंदा
धूप के पाँव- अमलतासी धूप

नववर्ष अभिनंदन- नव स्वर देने को

 

पहचान का रंग

चिड़िया जागी थी
तरु-तरु भागी थी
तुमने ऐसा क्या किया
जो वो उड़ ना पायी
हरियाली ढूँढती रही
पर किसी भी पात से
जुड़ नहीं पायी
जबकि सुना है हमने कि
पहचान का रंग
हरा होता है
अपने घर आँगन में
विश्वास पुरजोर
भरा होता है पर
वो चहचहाती चिड़िया
अब खामोशी के
घरोंदे बुनती है
बिना बोले ही
गीत गुनती है
जाने तुमने ऐसा
क्या किया कि
बोल मुखरित कर ना पायी

क्यों खींच दीं वर्जनाएँ
उसके इर्द गिर्द कि
वो चाह कर भी
ऋतुओं से संवाद
कर नहीं पायी
जबकि ऋतु भी
जानती थी कि
वो तो संगीत रचयिता है
सूरज, धूप, फूल
तितली को सहलाती
चंचल सी खुली हवा है
फिर भी एक साधक सी
आजकल वो
वो गहरे मौन में रहती है
अपने मन की बात
किसी को नहीं कहती है

१५ नवंबर २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter