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अनुभूति में डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -

माहिया में-
धूप छाँह सा मन

छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम

क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान

संकलन में-
वसंती हवा-फागुनी आँगन
घरौंदा
धूप के पाँव-अमलतासी धूप

नववर्ष अभिनंदन-नव स्वर देने को

 

 

गुलाबी अल्हड़ बचपन

मैंने बचपन के सामान को
अपनी स्मृति के कोटर में डाल दिया है
ताला लगा कर समय का
चाबी को सँभाल लिया है
बचपन के घर आँगन की
हवाओं में बिखरी किलकारियों
गुलाबी रिश्तों की बिखरी बातों
दीवारों पर टँगी
बुज़ुर्गों की
तस्वीरों को
सतरंगी बीते दिनों को
बिखरी यादों के मौसम को
बचपन की धुरी के चारों ओर
चक्कर काटते माँ बाबूजी
भाई भावज और उपहार से मिले
अल्हड मीठे दिनों को
अमूल्य पुस्तक-सा सहेज लिया है

और संचित कर जीवन कोश में
इंद्रधनुषी सतरंगी चूनर में
बाँध दिया है
अब यह पोटली मेरी धरोहर है
जिसे मैं किसी से बाँट नही सकती
कभी भी बचपन की चीज़ों को
कबाड़ की चीज़ों की तरह
छाँट नहीं सकती क्योंकि
यह पूँजी है
मैरे विश्वास की
कृति है श्रम की

जहाँ सें मैं
आरंभ कर सकती हूँ
यात्रा मन की
गुलाबी बचपन की

1 फरवरी 2007

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