अनुभूति में
डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -
माहिया में-
धूप छाँह सा मन
छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम
क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान
संकलन में-
वसंती हवा-फागुनी आँगन
घरौंदा
धूप के पाँव-अमलतासी धूप
नववर्ष अभिनंदन-नव स्वर देने को
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दो
क्षणिकाएँ
एक चट्टान
अब लौटते हैं चलो
सब कुछ खोकर
आत्म चैतन्य के प्रकाश में
क्योंकि हमें
ज्ञान है
दूर मन के बीचों बीच
उतरने के लिए
एक चट्टान है।
आगाही
आओ
हम तुम बाँटें
एक दूसरे को गुलाबी रोशनी में
जो एक हस्ताक्षर की तरह
छोड़ जाती है अपनी पहचान
और
जल कर दीये की लौ सी
कातर हथेलियों से अंगोरती रहती है
अंधेरे।
09 अक्तूबर 2005
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