अनुभूति में
डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -
माहिया में-
धूप छाँह सा मन
छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम
क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान
संकलन में-
वसंती हवा-फागुनी आँगन
घरौंदा
धूप के पाँव-अमलतासी धूप
नववर्ष अभिनंदन-नव स्वर देने को
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महक फूलों की
बसंत के आते ही
मैं भर लाती हूँ
अपनी सहज अनुभूति के आँचल में
महक फूलों की
बसंत के आते ही
मैं मंडराती हूँ
उन पर तितली-सी
गुनगुन करती
मैं काव्य रूप के पुष्प भी
बिन लाती हूँ
राग, रंग, छंदों के
ललछौने बासंती मौसम की
देहरी के द्वार खोल
मैं जब तब
सृजन के क्षण भी
चुन लाती हूँ
सच पूछो तो
मेरे मन के गुलशन
अपने आप में
राग, रंग, छंदों के
फूलों से
महके वातास हैं
बासंती मौसम में
सुगंधित मधुमास हैं
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