अनुभूति में
डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -
नयी छंदमुक्त रचनाओं में-
ख्वाबों के मौसम
पहचान का रंग
मैं जीना चाहती हूँ
रंगरेज मौसम
रेत के घरौंदे
नये हाइकु-
धूप पंखुरी
नई रचनाओं में-
ताँका
हाइकु में-
सर्द दिन
माहिया में-
धूप छाँह सा मन
छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम
क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान
संकलन में-
वसंती हवा- फागुनी आँगन
घरौंदा
धूप के पाँव- अमलतासी धूप
नववर्ष अभिनंदन- नव स्वर देने को |
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मैं जीना चाहती
हूँ
एक गिलहरी की तरह
कभी कभी मैं
कुतरती हूँ
अपना वक्त
जो घसियारे सा
काटता रहता है मुझको
और बंद रखता है
देह पिंजरे में रूह को
मैं खोलना चाहती हूँ
इस देह का पिंजरा
ताकि उड़ सकूँ
रात में सपने का
बुक्कल पहन
सुदूर आसमान में
और फिर भोर होते ही
लौट आऊँ
देह के पिंजरे में
क्योंकि मैं जीना चाहती हूँ
फूलों के रंगों के साथ
बसंत के मौसम के साथ
चाँद तारों की रात के संग
भिनसारे में चहकती
चिड़िया के संग
मैं देखना चाहती हूँ
उगते सूरज के संग
उगती सिंदूरी लाली का
सिंदूरी पल जब वो
सागर का चुंबन कर
धूप के मोती लुटाती है और
मैं जीना चाहती हूँ
तितलियों के संग
जो फूलों पर उड़
उनसे मकरंद चुराती हैं
मैं डूबी रहना चाहती हूँ
रिश्तों की चाँदनी में
और थोड़ा- थोड़ा
छूट जाना चाहती हूँ
सभी अपनों के दिल में
धड़कन की तरह ।
१५ नवंबर
२०१६
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