अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ
कविताओं में - अंधेरों के दरख्त अधबने मकानों में खेलते बच्चे अल्जाइमर के दलदल में माँ उसका आलिंगन उसके सपने जंगल होती वह जनसंघर्ष टूटना पहाड क़ा तमाम आतंकों के खिलाफ़ प्लास्टिकी वक्त में बाजारू भाषा बुढिया की बातें भीड में अकेलापन मौत और ज़िन्दगी याद वक्त के विरोध में रसोई की पनाह सपने देखता समुद्र
याद
खिड़की बन्द की दरवाज़ा उलट दिया रोशनदानों के कानों में कपड़ा ठूँस दिया
कोई भी तो सूराख नहीं रहा जिसे बन्द नहीं किया
फिर भी न जाने कब और कैसे याद से घर भर गया।
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