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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

जनसंघर्ष

बिसात बिछी है
गोटियाँ नाच नहीं रही हैं
बादल घुमड़ रहे हैं
बरसात हो नहीं रही है
नदी के तेवर समझ नहीं आते
धार सागर से उलटी भाग रही है

केनवास बिछा पड़ा है
रंगों की प्यालियों में
तडक़ रही है
तस्वीरों की प्यास

जीभ पर टिकी कविता
सरक जाती है गले में
जन तैयार हो रहा है
फिर एक संघर्ष के लिए

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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