अनुभूति में
रति सक्सेना की रचनाएँ
कविताओं में -
अंधेरों के दरख्त
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्ष
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र |
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तमाम आतंकों के खिलाफ़
एक लाल सद्यजात आसमान
उनकी चोंच में दबा है
वे कोशिश कर रहे हैं
उसे टिका दें क्षितिज में
वे फड़फड़ाते हैं उड़ते हैं
फिर टपक पड़ते हैं
लड़खड़ाते हुए आसमान के साथ
उन्हें याद भी नहीं कि वे कभी सफेद थे
एक दम झक बर्फ़ के टुकड़े से
इस वक्त वे अपने काले हुए परों को
गिरने से बचाते हुए
कोशिश कर रहे हैं कि
एक आसमान टिक जाए छत-सा
इस दुनिया के सिरे
तमाम आतंकों के खिलाफ़।
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