अनुभूति में
रति सक्सेना की रचनाएँ
कविताओं में -
अंधेरों के दरख्त
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्ष
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र |
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सपने देखता समुद्र
समुद्र के सपनों में मछलियाँ नहीं
सीप घोंघे जलीय जीव जन्तु नहीं
किश्तियाँ और जहाज़ नहीं
जहाज़ों की मस्तूल नहीं
लहरों का उठना और सिर पटकना नहीं
नदियाँ नहीं उनकी मस्तियाँ नहीं
समुद्र सपना देखता है
ज़मीन का उस पर चढ़े पहाडों का
पहाड़ों पर पेड़ों का
उन सबका जिन्हें नदियाँ छोड़
चली आईं थीं उस के पास
समुद्र के सपने में पानी नहीं होता है।
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