अनुभूति में
रति सक्सेना की रचनाएँ
कविताओं में -
अंधेरों के दरख्त
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्ष
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र |
|
वक्त के विरोध में
उसने सोचा
आड़ी पड़ी देह को
सीधा खड़ा कर दे
ठीक नब्बे डिग्री के कोण पर
छू ले आसमान को एडियाँ उचकाकर
वह उठी
बीस तीस सत्तर अस्सी कोण को पार कर
पहुँच गई नब्बे पर
तमाम कोशिशों का बावजूद
आधी दबी रही ज़मीन में
एक सौ अस्सी पर लेटी हुई
अगली कोशिश थी उसकी
सीधी रेख बनने की
किन्तु बनती बिगड़ती रही वह
त्रिभुज चतुर्भुज में
अब झाड़ दिए हैं उसने सारे कोने
बन रही है वृत दौड़ में शामिल होने को
वक्त के विरोध में।
|