अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ
कविताओं में - अंधेरों के दरख्त अधबने मकानों में खेलते बच्चे अल्जाइमर के दलदल में माँ उसका आलिंगन उसके सपने जंगल होती वह जनसंघर्ष टूटना पहाड क़ा तमाम आतंकों के खिलाफ़ प्लास्टिकी वक्त में बाजारू भाषा बुढिया की बातें भीड में अकेलापन मौत और ज़िन्दगी याद वक्त के विरोध में रसोई की पनाह सपने देखता समुद्र
अंधेरों के दरख्त
परछाइयों के बीज कुछ इस तरह बिखर गए पिछवाडे
कि खड़े हो गए रातो रात अंधेरों के दरख्त फूल खिले फिर फल टपक पड़े बीज फट
दरख्तों से उगे पहाड़ पहाडों से परछाइयाँ पौ फटनी थी कि छा गया अंधेरा पूरी तरह।
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