अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

जंगल होती वह

वह जो जो कहता गया
यह वह वह मानती गई
उसने कहा तेरी आँखे कमल की पंखुडियाँ
इसने कहा अच्छा
उसने कहा नाक तोते की चोंच
इसने कहा अच्छा
और होंठ रसभरियाँ, दाँत दाडिम
स्तन कमर जांघे

इसने टटोल कर देखा देह का टुकड़ा टुकड़ा
आँखे मूँदे कहती रही हाँ हाँ हाँ

अब वह थोड़ी वनस्पति थोड़ी पंछी
थोड़ी-सी जानवर
बन गई थोड़ा-सा आसमान
टहनियाँ खिलीं फूल सूखे
न जाने कब बीज टपक गया कोख से
चल दिया दरख़्त की यात्रा को
इस बार वह कह न सकी हाँ हाँ हाँ
झरने लगा रोयाँ रोयाँ
बनती हुई भरपूर जंगल
सोचने लगी क्यों नहीं किसी ने कहा
''तेरी कोख है सबसे सुन्दर''

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter