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अनुभूति में रति सक्सेना की रचनाएँ

कविताओं में -
अंधेरों के दरख्
अधबने मकानों में खेलते बच्चे
अल्जाइमर के दलदल में माँ
उसका आलिंगन
उसके सपने
जंगल होती वह
जनसंघर्
टूटना पहाड क़ा
तमाम आतंकों के खिलाफ़
प्लास्टिकी वक्त में
बाजारू भाषा
बुढिया की बातें
भीड में अकेलापन
मौत और ज़िन्दगी
याद
वक्त के विरोध में
रसोई की पनाह
सपने देखता समुद्र

 

बुढ़िया की बातें

उस बुढ़िया का पेट
बातों का ढोल
इधर बतियाती
उधर गपियाती
बिता देती इतना वक्त कि
अकेलापन
बिना दरवाज़ा खटखटाए
सरक जाता चुपचाप
एक दिन बुढ़िया चुप थी
सूरज आया
बुढ़िया बोली नहीं
चाँद खिला
बुढिया चुप थी
हवा, फूल, चींटीं, केंचुआ
सभी आकर चले गए
बुढ़िया को न बोलना था, न बोली

कहते हैं उसी दिन
दुनिया और नरक के बीच की दीवार
भडभडा कर गिर पड़ी

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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