टूटना पहाड़ का
उसने सोचा
''मैं पहाड बनूँगा''
तमाम ढेलों के ढेर पर खड़े हो
हाथ फैलाए ओस बन्द हो गई मुठ्ठी में
वह सोचने लगा
बन्द हो गई समन्दर की किस्मत
उसने साँस खींची
जकड ली तमाम ज़िन्दगियाँ
उसे लगा कि वह पहाड़ हो गया
दोस्ती हुई हरियाली से
बादलों से चुहुलबाजी
सिर पर बुलन्दियों का सेहरा
हल्की-सी हवा क्या चली
वहाँ पड़ा था फिर से ढेलों का ढेर।
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