पूरा आकाश
जैसे
पूरा आकाश जैसे घनघोर बादल
मेरे अतीत की तरह
उसके गर्भ में से मानो कि
टूट पड़ेगा मूसलाधार...
बिजली के चमकार डराते हैं
मुझे
मानो,
शेर की दो चमचमाती अंगारे जैसी आँखे
और उसकी जीभ की लपलपाहट...!
मुझे नींद में भी डराता है
उसका चेहरा,
पूरे शरीर में दाह-सभर लू जैसी लाह
मुझे डुबोती है
मानो संसार सागर में...
उस वक्त
किसी मछली को तैरती देखूँ
एक्वेरियम में
और
ठंडक मिलती है मेरे
इस दिल में...!!
१३ अक्तूबर २००८