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हरा आँगन |
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हरा आँगन
कल तक
मुरझाये हुए थे वे
बंद देहरी के आँगन में
यहाँ-वहाँ दौड़ते सूखे पत्ते
इकट्ठे होकर एक कोने में
सयाने बच्चों की तरह बैठ गए है
कुएँ में बंधा
स्थिर जल सिवार और बेल से
ढका हुआ
आज नीले आकाश को प्रतिबिंबित
करता है तुम्हारे चहरे की तरह !
मकडी के जाल से सराबोर
तुलसी क्यारे में खड़ी सूखी शाखाओं के
शिखर पर
इकलौता हरा पर्ण
आँगन को सुगंधित करने
समर्पित हो रहा है
कोने में आज भी
तुम्हारे हाथों से बोया वो
गुलाब का पौधा
पवन की लहर के साथ
नर्तन कर रहा है,
माँ के बिना यह घर
बिलकुल सूना था
जो, तुम्हारे आने से
सज रहा है नया रूप
माँ कहती थी -
मेरी बहु सगुनवाली होगी
आते ही इस घर को
हराभरा कर देगी
माँ तुम्हें देख रही है
हे प्रिये... !
२९ नवंबर २०१० |