अनुभूति में
पंकज त्रिवेदी
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मन या शरीर
सड़क के बीच
सवाल
सुख
हरा आँगन |
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नसीहत
आज की हवा सर्द है
जवाँ भी है दिल की धड़कनें
खिड़की से झाँकती है ये धूप
किसी की अंगड़ाई में मचल रही है
जैसे,
किसी तोख़ार की दौड़
नशे में रहता है पूरा देश
नज़रें टिकी है उन पर
जो नस्ल है सुबह की किरनें
अब-
उन्हें ही सँभालनी होगी
इस मिट्टी की सुगंध
सरज़मीं की फ़सलें
युवाओं की बागडोर
उन्हीं के विचार में, खो गई है
इस ज़मीं की हर शाम
जो ढल रही है-
होले होले
उस शाम में-
अब भी तपिश है, मायूसी है थोड़ी-सी
मगर,
आस नहीं छूटी अब भी-
यारों
आज है वेलेंटाइन डे
सँभालो अपने आप को
सुनहरी शाम कह रही है
आनेवाली हर एक
रुपहली सुबह को...!!!
१३ अक्तूबर २००८
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