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पता ही न चला

वक़्त बरबाद होता ही गया, पता ही न चला
हमने उसे रूह-ब-रूह किया, पता ही न चला

कौन कहेगा कि, ज़माने की दौड़ में थे हम
कब होश आया कब गिरे, पता ही न चला

रोज़मर्रा की ज़िंदगी, थम-सी गई है लेकिन
आप कब आए कब चले गए, पता ही न चला

न बरबाद हम हुए, न बरबाद तुम हो गए
वक़्त ने शायद बदली करवटें, पता ही न चला

१३ अक्तूबर २००८

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