अनुभूति में
पंकज त्रिवेदी
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(पाँच कविताएँ)
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अनमोल मोती
झुग्गियाँ
तृषा
दस्तक
नसीहत
निःशब्द
नीम का पेड़
पता ही न चला
पूरा आकाश जैसे
बचपन
बातें
मन या शरीर
सड़क के बीच
सवाल
सुख
हरा आँगन |
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दस्तक
लगता है कि
वजूद नहीं है मेरा कोइ
यहाँ तुम्हारे लिए
तुम चंचल हो,
नर्म दिल और भोली सी
तुम्हारे ही अंदर
पड़ी है अकाल की वो दरारें
जो सदियों से सूखे को संजोकर
बैठी है तन्हा
तुम्हें क्या पता कि
वो इस मिट्टी से
अलग-थलग करती है हमें
प्रति पल !
अब भी वक्त है,
ठहरो, सोचो और
खुद को ही सँभालो
आनेवाली मुश्किलों से
बचा लो
जो दस्तक दे रही है
मेरे-तुम्हारे
मन के द्वार पर...!!!
२९ नवंबर २०१० |