अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनोरंजन तिवारी की
रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अनगढ़ कविता
ऐसा क्यों होता है
कविता सी कुछ
खो गई है मेरी कविताएँ कहीं
मेरी कविता
मैं कवि नहीं हूँ

छंदमुक्त में-
अंकुर
दिल पर ले यार
प्रकृति
माँ भी झूठ बोलती है
लड़कियाँ

 

 

प्रकृति

संभावनाएँ है जहाँ संघर्ष भी वहीं है
आकांक्षाओं की टकराहट और
असंयमित अदावत भी वहीं है
विरूपित भावनाएँ घात-प्रतिघात व
आगे निकलने की होड़ वहीं है
गहरी चाल अभिशाप व अतृप्ति वहीं है
फिर निराशा हताशा और संताप वहीं है
जहाँ रिक्त है वहाँ सब तृप्त है.
यही प्रकृति है
सो हे मनीष तू मुझे रिक्त कर
और इस तरह मुझे तृप्त कर
क्योंकि नहीं डूबना चाहता मैं
महत्वाकांक्षाओं के महासागर में
नहीं भटकना चाहता मैं
संभावनाओं के शहर में
तू मुझे रिक्त कर।

८ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter