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ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है कि
मेरे जीवन के घोर निराशा
और नाउम्मीदी के पलों में भी
रौशन हो जातीं नामालूम उम्मीद की किरणें
जब तुम्हें सोचता हूँ
बरबस ही मेरे होठों पर खिल जाती है
एक मुस्कुराहट (जो ना जाने कब से रूठी होती है)
जब याद आती हैं मेरे जीवन की
कुछ ऐसी बातें जो मैं सिर्फ तुम्हें बताना चाहता था
मेरे कदमों में अचानक से तेजी आ जाती है
जैसे मेरे उपर से कई मन का बोझ हटा दिया गया हो
जब पूछ लेती हो कभी भूले से ही हाल-चाल मेरा
ना जाने कहाँ से आ जाता है मुझमें
इतना जोश, इतना उत्साह
कि सब कुछ इतना असान सा लगने लगता है
कि लगने लगता है कि कुछ भी मुश्किल नहीं है
पाना जीवन में
अगर पूछ लेती हो एक बार मेरे काम के बारें में
ऐसा क्यों होता है कि
मेरे ख्यालों में बार-बार ये आता है कि
पा सकते थे सब कुछ
अगर तुम्हारा साथ मिल जाता
और ये सोच कर दिल बैठ सा जाता है
कि अब क्या होगा कुछ पाकर
अगर तुम साथ ही ना हो
क्या तुम्हें नहीं लगता कि शायद कुछ बाकी है
हम दोनों के बीच
जिसे ठीक किया जा सकता है।
१५ जनवरी २०१६
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