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मेरी कविता
एक कदम बढाते ही
भरभरा कर बिखर जाती है कविता
स्वार्थांधता, क्षोभ और अहंकार से
सहम जाती है कविता
ईर्ष्या, कड़वाहट और जीवन की
विषमताओं के अँधेरे में
भटक जाती है कविता
कविता, जो अब रही ही न मुझमें
किसी ने बड़ी बेरहमी से
निचोड़ लीं मेरे अंतस की सारी कविताएँ
और छोड़ दिया मुझे
अकेले जीवन के महासमर में
सहने को अनन्त यातनाएँ
अब कानों में यों ही
किसी के फुसफुसाने की आवाज नहीं आती
ना कोई परिचित गंध, साँसों से आकर टकराती है,
अब तो अनगिनित शोर, संतापों और प्रताड़नाओं के
नीचे दफन हो जाती है कविता
कितनी कोशिशें करता हूँ कि
सँजोकर, सहेजकर रख सकूँ उन सारे अक्षरों को
जो मुस्कुराहट भरते हैं, मेरी कविताओं में
मगर आत्मग्लानि और पश्चाताप के आँसुओं में
बह जाती है कविता
लाख जतन करता हूँ कि
मुरझाने से बचा लूँ अपनी कविता को
मगर भय, भूख और दरिद्रता के लू में
झुलस जाती है कविता।
१५ जनवरी २०१६
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