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अनगढ़ कविता
ऐसा क्यों होता है
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मैं कवि नहीं हूँ

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अंकुर
दिल पर ले यार
प्रकृति
माँ भी झूठ बोलती है
लड़कियाँ

 

मैं कवि नहीं हूँ

कविताएँ मर्म स्पर्शी होती हैं
जीवन के हर रंग की आरुषि होती हैं
भावुकता व विद्रोह की अभिव्यक्ति होती हैं
समाज को सही दिशा दिखाने की
एक कोशिश होती है
शिल्‍प,सृजन व सौंदर्य से विभूषित
कविताएँ
कुरूपता नहीं सह पातीं
विकृति व विरूपित मानसिकता नहीं सह पातीं
बिखर जाती है कविता
लोग पढ़ते है कविता
गुनगुनाते भी हैं इसे
भावों को समझ भावुक होते हैं
मेरी कोशिशें अधूरी हैं शायद
गढ़नी नहीं आती ऐसी कविता
या शायद मैं कवि नहीं
स्वयम् कविता हूँ
जो लिखता हूँ वो
उन कविताओं का भावार्थ होता है
और इन सभी अर्थों को जोड़ कर देखो
सबका मतलब सिर्फ एक है
कि मैं कविता क्यों हूँ?

१५ जनवरी २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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