अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनोरंजन तिवारी की
रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अनगढ़ कविता
ऐसा क्यों होता है
कविता सी कुछ
खो गई है मेरी कविताएँ कहीं
मेरी कविता
मैं कवि नहीं हूँ

छंदमुक्त में-
अंकुर
दिल पर ले यार
प्रकृति
माँ भी झूठ बोलती है
लड़कियाँ

 

अनगढ़ कविता

मैं तो सदा
लिखता रहा सिर्फ तुम्हारी खातिर
ताकी तुम पढ़ सको मुझे
ढूँढ सको कोई रौशन जगह
मेरे मन के अँधेरे कोने में
दे सको आकार
मेरी अनगढ़ कविताओं को
सीच सको, अपने नम होठों से
मेरे निर्जन, बेजान पड़े जीवन को
सिखा सको मुझे जीना
रंग भरना जीवन में
मैं तो सदा लिखते रहा
ताकि देख सकूँ
तुम्हारी आँखों में चमक, लबों पर हँसी
सुन सकूँ तुम्हारी जुबाँ से
"पगले हो तुम बिल्कुल"
जान सकूँ तुम्हारी वो चाहत
कि फ्रेम करा कर रख लेना चाहती हो
मेरे हर शब्द को, मेरी लेखनी को
मेरे शब्दों ने ही तोड़ दिये सीसे सब फ्रेम के
शब्द के इस दोगले चारित्र को
समझा ही नहीं
इसलिये आज भी लिखे जा रहा हूँ।

१५ जनवरी २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter