अनुभूति में
मनोरंजन तिवारी की
रचनाएँ-
नयी
रचनाओं में-
अनगढ़ कविता
ऐसा क्यों होता है
कविता सी कुछ
खो गई है मेरी कविताएँ कहीं
मेरी कविता
मैं कवि नहीं हूँ
छंदमुक्त में-
अंकुर
दिल पर ले यार
प्रकृति
माँ भी झूठ बोलती है
लड़कियाँ
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लड़कियाँ
उत्तम स्त्री गुणों से संपन्न
कुछ जहीन लड़कियाँ
रास्ते में चलते हुए
लड़खड़ा जाती है कभी-कभी
और शालीन सहारे को पाकर
प्रफुलित भी हो जाती है
नहीं पढ़ पाती कई बार सही तरह से
आँखों में छपी भाषा किसी शख़्स के
कभी कुछ छोटी कभी बड़ी गलतियाँ कर जाती है
ये लड़कियाँ डाल पर लगे
खुबसूरत फूलों की तरह होती है
जो हवा के झोकों के साथ
कभी उपर कभी नीचे हिलती डोलती इतराती
इसे अपनी अजादी समझ
खुशी से झूम जाती है
ये लड़कियाँ
पसंद नहीं इन्हें
खुद को तोड़ा जाना
मुरझाना या सूख कर बिखर जाना
हर बार हाथ बढ़ाने वालों के
हाथों को छूकर दूर झिटक जाना
अच्छा लगता है
खूब ठठाकर हँसती है
जब ऐसा होता है
बिल्कुल इस सच से अनभिज्ञ
की जिस छोटे कद की डाल पर लगी है ये
उसकी ऊँचाई इतनी नहीं होती
की ज़िद पर अड़ा कोई हाथ
इन्हे तोड़ ना ले
हवा के झोके भी हरदम साथ कहाँ देते है?
८ दिसंबर २०१४
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