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खो गई है
मेरी कविताएँ कहीं
ढूँढ रहा हूँ अपनी कविताओं को
भाड़े के कमरे के
कोने-कोने में
जहाँ कमरे के बाहर खोले गए
चप्पलों की संख्या के हिसाब से
बढ़ जाता है किराया
हर माह
ढूँढ रहा हूँ अपनी कविताओं को
चावल, दाल और आटे के
खाली कनस्तरों में
बेटी के दूध की बोतल में
जिसमें तीन चौथाई
पानी मिला है
ढूँढ रहा हूँ अपनी कविताओं को
पत्नी की बेबस आँखों में
माँ की कराहों में
"अपने साहब " की गुर्राहटों में
परिजनों के रहमहिल
उद्गारों में
ढूँढ रहा हूँ अपनी कविताओं को
कुछ भूले-बिसरे दोस्तों के साथ
गुजारे उन खुबसूरत पलों में
जो गलती से भी मय्सर
नहीं होते अब एक
पल के लिए भी।
अभी -अभी तो दिखी थीं कविताएँ
जब सोच रहा था उसकी बातें
जो कभी मेरी हर ख़ुशी की
वजह हुआ करती थीं
उसकी निश्छल मुस्कुराहटों में
गुम हो जाते थे हर गम
और दुःख की छाया भी
पर बदले हालात में बदली उसकी
मुस्कुराहटों में
गुम हो गईं मेरी कविताएँ फिर से
ढूढ़ रहा हूँ अपनी कविताएँ।
१५ जनवरी २०१६
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