अनुभूति में
मधुलता अरोरा
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अकेली कहाँ हूँ?
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काश मैं बच्चा होती
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मेरे अपने
महिला दिवस पर विशेष
नारी
छंदमुक्त में-
अकेलापन
जादूगर बसन्त
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पत्नी
मानदंड
मोबाइल महिमा
रिश्ते हैं ज़िंदगी
वाह! क्या बात है
संकलन में-
दिये जलाओ-
दीपोत्सव
मौसम- ओ मौसम
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नारी
मैं नारी हूँ आज के ज़माने की
पुस्र्ष के कंधे से कंधे
मिलाकर चल रही हूँ
मैं सफल विज्ञापन की
आवश्यक शर्त हूँ
मैं सफल विवाहिता की
पहचान हूँ
मैं मुगालते में हूँ
मैं स्वतंत्र हूँ
जब खुद को ढूँढ़ती हूँ
तो पाती हूँ कि
मेरा अपना कुछ नहीं है
बात-बात पर "मेरा-तेरा"
"हम" का तो
अस्तित्व खो गया
"प्यार" के आगे
प्रश्नचिह्न है
अब सवाल
अधिकार का है
प्यार है सिसक रहा
मैं नारी
प्रेम की मूर्ति
कोमलता का आगार
पल-प्रतिपल हो रही हूँ
खंडित-खंडित
हां, मैं नारी हूँ
तिल-तिल जलती
रिश्तों में बंटी हुई
जिंद़गी जीती हूँ
मेरे एहसास
सिऱ्फ मेरे हैं
ये खुद से खुद
जूझ रहे हैं
नए अर्थ ढूँढ़ रहे हैं
मैं नारी
देश की, विदेश की
कोई फ़र्क नहीं है
हम सह रही हैं
जी रही हैं
जिंद़गी के पाठ
पढ़ रही हैं
९ मार्च २००५ |