अनुभूति में
मधुलता अरोरा
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मेरे अपने
हे कागज़!
तुम कितने मेरे अपने हो
मेरा मन देखता है सपने
और तुम ख़ुद-ब-ख़ुद
आ जाते हो हाथ में
मैं दीन-दुनिया से
होकर बेख़बर उकेर देती हूँ
संवेदनाएँ तुम पर
तुम ही तो हो
जिससे बाँटती हूँ ग़म
तुम मेरी जि़न्दंगी के हमसफ़र हो
हमसाया हो
२३ मई २०११
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