वक्त तो उड़ गया
वक्त तो उड़ गया तितलियों की तरह
बाग से फूल खुशबू चुराते रहे
क्यारियों के किनारे बनी मेंड़ पर
चन्द भँवरे सदा गुनगुनाते रहे।
उस नदी के किनारे बने पेड़ से
गीत कोयल का मौसम पे छाता रहा
खेत की दोस्ती भी हवा से हुई
लहलहाता रहा मुस्कराता रहा।
शाम भी चाँद की डोर ले हाथ में
रात की ओर धीरे से जाती रही
जो कभी साथ अपने थी इस मोड़ पर
हमको वो ज़िन्दगी याद आती रही।
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