अपने दिल के हर आँसू को...
अपने दिल के हर आँसू को फूल बनाना सीखा है
और दर्द के हर कतरे को शूल बनाना सीखा है।
हूँ कत्ल हुआ कई बार यहाँ इन सन्नाटी-सी गलियों
में
है खून बहाया भी काफी इस दुनिया की रंगरलियों में
आँखों के काजल से मैंने तीरों को चलते देखा है
सावन के आँचल के टुकड़े को आग उगलते देखा है
गिर कर घायल हो धरती की छाती पर पाँव पसारे हैं
और कभी खड़े हो एक टाँग पर हफ्ते यहाँ गुज़ारे हैं
तुम हाथ में पत्थर को लेकर अब किसे डराने आए हो
मैंने हर लोहे के टुकड़े को धूल बनाना सीखा है।
तुम जिस आँसू की बाँह पकड़कर इतनी दूर चले आए
जिसकी ताक़त पर आज तलक सारे दस्तूर चले आए
वह तेरी हिम्मत के कारण तेरा साथी बन बैठा है
उसके आगे आँखे तेरी उसके पीछे मन बैठा है
रोने वाले का साथ मगऱ वह भी तो न दे पाता है
नज़रों के रस्ते देखो सबसे पहले छोड़ के जाता है
चाहे जितनी गहरी हों जितनी मज़बूती से जकड़े हों
हर बड़े वृक्ष के कण कण को निर्मूल बनाना सीखा है।
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