अनुभूति में
अभिनव शुक्ला की रचनाएँ -
गीतों में-
अंतिम मधुशाला (हरिवंशराय बच्चन को श्रद्धांजलि)
अपने दिल के हर आँसू को
आवाज़ें
नहीं बयान कर सके
बांसुरी
वक्त तो उड़ गया
शान ए अवध
है बड़ी ऊँची इमारत
ज़िन्दगी है यही
हास्य-व्यंग्य में -
इंटरव्यू
काम कैसे आएगी
गांधी खो गया है
जेब में कुछ नहीं है
मुट्टम मंत्र
विडंबना
संकलन में
ज्योति पर्व -वो
काम दिवाली कर जाए
खुशियों से भरपूर दिवाली
गाँव में अलाव -
कैसी सर्दी
प्रेमगीत -
भावों के धागों को
गुच्छे भर अमलतास
नया साल-अभिनव
नववर्ष हो
ममतामयी-मेरा
आदर्श |
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मुट्टम मंत्र
डाक्टर बाबू कह रहे सुबह सवेरे जाग,
बिस्तर बिखरा छोड़कर चार मील तू भाग,
चार मील तू भाग, छोड़ दे घी और शक्कर,
सेब, सन्तरा चाप, लगा गाजर के चक्कर,
अंग्रेज़ों की तरह अगर उबला खाएगा,
दो महीने में बिल्कुल ही दुबला जाएगा,
निंदिया प्यारी छोड़कर, कैसे जाएँ जाग,
उसके ऊपर कह रहे, चार मील तू भाग,
चार मील तू भाग, मुड़ा जो पाँव हमारा,
हड्डी टूटे हाय, करें उपचार तुम्हारा,
तले भुने को त्याग यदि उबला खाएँगे,
चार दिनों में बिना स्वाद के मर जाएँगे,
जीवन के इस सत्य से, मत रहिए अन्जान,
मोटे होकर देखिए, एक बार श्रीमान,
एक बार श्रीमान, पूजनीय गणपति मोटे,
सभी देवगण जिनके आगे लगते छोटे,
क्या पाओगे बेपेंदी के लोटे होकर,
पुण्य कमाओ तुम भी जग में मोटे होकर,
मन में बस यह सोचिए, बनना है अदनान,
बारह घंटे सोइए, लम्बी चद्दर तान,
लम्बी चद्दर तान, उठो तो खाओ समोसा,
बर्फी, रबड़ी, पिज़्ज़ा, आइसक्रीम और डोसा,
हिलो डुलो कम से कम, बिल्कुल करो ना कसरत,
जल्दी हो जाएगी पूरी, मन की हसरत,
पानी के स्थान पर पियो कोका कोला,
जब भी मौका मिले, दाब लो पूड़ी छोला,
दाब लो पूड़ी छोला, रोज़ पाव भर लड्डू खाओ,
हलवाई से मधुर मधुर संबंध बनाओ,
मान लो यदि कभी जेब में ना हो पैसा,
लो उधार खाओ इसमें शरमाना कैसा,
लिखकर घर में टाँग लो, बड़े काम की बात,
नहीं छूटनी चाहिए, कहीं कोई बारात,
कहीं कोई बारात, बिना सोचे घुस जाओ,
तवा फाई को चखो, चटपटी चाट चबाओ,
बाराती सोचेंगे होगा कोई जनाती,
और जनाती सोचेंगे भूखा बाराती,
अपने भारतवर्ष की भारी भरकम शान,
मोटों की डायरेक्टरी, है कपूर खानदान,
है कपूर खानदान, थे मिस्टर पृथ्वी मोटे,
राज, शशि, शम्मी, ऋषि, रणधीर ना खोटे,
अभी करीना और करिश्मा दिखलाएँगी,
जब लेंगी सन्यास, टीम में आ जाएँगी,
गीत और संगीत में मोटे डालें प्रान,
नितिन मुकेश बांसुरी, शोभा मुद्गल गान,
शोभा मुद्गल गान, रंगीला बप्पी लहरी,
कला भला कब किसी दुबलवे के घर ठहरी,
नई उमर में नई क्रान्ति का बिगुल बजाएँ,
मोटा होकर दुनिया को आओ दिखलाएँ,
मंचों पर भी देखिए अलबेली कविताई,
मोटे कवियों नें सदा अपनी धाक जमाई,
अपनी धाक जमाई, शैल जी जबसे फूले,
लोग सूर, तुलसी, कबीर सब नाम हैं भूले,
ले प्रदीप चौबे झूमें लस्सी का कुल्हड़,
कवि सम्मेलन लूट रहे मोटे हो हुल्लड़,
भारी हो सरकार तो, कभी ना सकती टूट,
मोटा होने के लिए, धन की मची है लूट,
धन की मची है लूट, बिक रहे मुटियाने के यंत्र,
बाँट रहे हैं मुफ्त में, हम यह मुट्टम मंत्र,
कह अभिनव कविराय जो इसे मन से गाए,
हफ्ता भर में वह कुण्टल भर का हो जाए |