अनुभूति में
अभिनव शुक्ला की रचनाएँ -
गीतों में-
अंतिम मधुशाला (हरिवंशराय बच्चन को श्रद्धांजलि)
अपने दिल के हर आँसू को
आवाज़ें
नहीं बयान कर सके
बांसुरी
वक्त तो उड़ गया
शान ए अवध
है बड़ी ऊँची इमारत
ज़िन्दगी है यही
हास्य-व्यंग्य में -
इंटरव्यू
काम कैसे आएगी
गांधी खो गया है
जेब में कुछ नहीं है
मुट्टम मंत्र
विडंबना
संकलन में
ज्योति पर्व -वो
काम दिवाली कर जाए
खुशियों से भरपूर दिवाली
गाँव में अलाव -
कैसी सर्दी
प्रेमगीत -
भावों के धागों को
गुच्छे भर अमलतास
नया साल-अभिनव
नववर्ष हो
ममतामयी-मेरा
आदर्श |
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बाँसुरी
आज बाँसुरी को देखा,
बाँस की लकड़ी,
आरी पर चढ़,
कैसे सुर में बदल गई,
दर्द ने कैसे छेद किए,
कैसे रंग भरे स्वप्नों ने,
कैसी शामें,
कैसी रातें,
जलते बुझते निकल गई,
बात बाँस में,
या आरी में,
यह स्मृतियों में आया,
अगर बॉस ना होता,
तो फिर यह आरी,
किस पर चलती,
और यदि आरी ना होती,
तो फिर स्वर कैसे आते,
बाँस और आरी जब मिलते हैं,
तभी बाँसुरी बनती हैं,
फिर आरी पर चढ़ने में,
जग किस खातिर घबराता है,
आरी के घर बैठ ही जीवन,
मधुरिम राग सुनाता है
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