है बड़ी ऊँची इमारत
है बड़ी ऊँची इमारत और छोटे आदमी
किस तरह अब रास्तों के पार सोचे आदमी।
घूमते झूले चमकती बत्तियाँ और रोशनी
धूल का अंबार घुटती सांस रिसती चाँदनी
चन्द चेहरों पर मुखौटों की परत जमती हुई
और कुछ पर ज़िन्दगी की धूल है थमती हुई
विदेशी घास बहते ताल सहती मछलियाँ
तेज़ लिफ्टें खड़ी सीढ़ी पाँव मोंचें आदमी।
एक बचपन एक बचपन का गला पकड़े हुए
एक यौवन एक यौवन को कहीं जकड़े हुए
एक छोटी-सी तमन्ना एक बड़ा-सा फैसला
एक खुशबू पुष्प पूरी ताज़गी का सिलसिला
पढ़ के अब कानून हमदम आ गए हैं इस तरफ़
शौक से अब आदमी की खाल नोचे आदमी।
है बड़ी ऊँची इमारत और छोटे आदमी
किस तरह अब रास्तों के पार सोचे आदमी।
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