अनुभूति में
डा. सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' की
रचनाएँ
नई रचनाएँ
ओस्लो की सड़क
पर, भीख माँगता दर-दर
बर्फ़ीला मौसम, विहँसते गुलाब
सड़क पर पर्यावरण देवी
कविताओं में-
ऊधव के पत्रों-सी
बाँच रही धूप
कवि वही
कविता
तितलियाँ
दूर देश से आई चिट्ठी
दो लघु रचनाएँ
नॉर्वे एक चित्र
प्रेम हमारे प्राण
बरखा के आने पर
मेरे सगे स्नेही लगते
राजनीति और लेखनी
शिकायत
शिकायत (समंदर से)
सूरज से कम नहीं उलाहना
क्षणिकाओं में-
संयम,
संबंध,
बड़बोले
हाइकू में-
विरोधाभास, सूखा, प्रेम, विरही क्षण,
केंचुल सा साथ
संकलन में
गांव में अलाव - बर्फ पांच
कविताएँ
गुच्छे भर अमलतास- दिन में पूनम का चाँद
तुम्हें नमन- युग पुरुष गांधी से
धूप के पांव- यह वह सूरज नहीं
मेरा भारत- धन्य भारतीय संस्कृति
वर्षा मंगल-
आई बरखा बहार
वसंती हवा- आकुल वसंत
शुभकामनाएँ- जीवन में बहुरंग
नया साल - स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
ज्योति पर्व- दीप जलाना
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ऊधव के पत्रों-सी बाँच रही धूप
नॉर्वे में ग्रीष्म के नवरंग
निशब्द, स्वच्छंद, मद भंग
हरी-हरी घास हो, या पथरीली गरम रेत
निर्वस्त्र स्वीकारते सूरज का आमंत्रण
ध्रुवीय रेखा से गुज़रते हुए देश
फ़िनलैंड नॉर्वे और स्वीडेन
उत्सव भी ग्रीष्म में थकते नहीं
जब आधी रात चमकते सूरज से
मंत्रमुग्ध, बंधनमुक्त आकर्षण
जैसे बाहों मे भरे हुए सूरज
तप-तप कर कुंदन बन रहे
धूप खा रहे गोरे-साँवले बदन
ऊधव के पत्रों-सी बाँच रही धूप
श्वेत कणों में घुल रहा चंदन
नतमस्तक हो रहे सभी उत्तरवासी
सूरज का कर रहे अभिनंदन. . .
9 जून 2007
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