बर्फ़ीला मौसम, विहँसते गुलाब
दूध के दाँत से
तुतली जुबान से।
भोर की पोर बन,
निकली अजान से।।
अवध की महुआ,
मगध की पुरवा।
मधुकर बयार बह,
चमके बिजुरिया।।
सदाचार संचारी,
महकत विभावरी।
भचपन की लोरी,
मेघों में साँवरी।।
पी पी पुकारती,
छलकत हैं नयना।
पीहर में सजना,
लज्जा बने गहना।।
पूरब की सरसों,
पीपल की छाँव,
यादों की नदिया,
बसा मेरा गाँव।।
यहाँ बरफबारी,
क्रिसमस वृक्ष हरे।
अमावस की रात,
बरफ़ ने तम हरे।।
वसंती हवायें,
यहाँ शीत लहरी।
स्मृतियों की सिलन
पैबन्द देहरी।।
उधेड़ रही परत,
बेबस दूरी है।
सपनों में मिलना,
यह मजबूरी है।
ओ! वसन्त तुम्हारा,
नहीं है जवाब।
बर्फ़ीला मौसम,
बिहँसते गुलाब।।
३ अगस्त २००९
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