अनुभूति में
डा. सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' की
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गुच्छे भर अमलतास- दिन में पूनम का चाँद
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धूप के पांव- यह वह सूरज नहीं
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शुभकामनाएँ- जीवन में बहुरंग
नया साल - स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
ज्योति पर्व- दीप जलाना
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सूरज से कम नहीं उलाहना
सूरज से कम नहीं उलाहना,
धूप लू को रिश्वत में बाँटना।
कट रहे पेड़ जब यहाँ-वहाँ,
छाया की क्या करें कामना
छायादार वृक्षों की क्या कहें,
बन रहे अमीरों के पालना।
खलियानों में आग-सी बयार,
सड़कों पर श्रमिकों का हाँफना।
जब सूखे हों पालिका के नल,
बाज़ार में पानी को बेचना
आज़ादी प्रजातंत्र सुख को
खुले आम पैसे से बेचना।
एक दिन आएगा रामराज्य,
एक ही तराजू में तौलना
बाँटकर खाएँगे हम सब,
भूखे पेट कभी नहीं सोना।
शिक्षा चिकित्सा होगी निशुल्क
अमीरों से ज़्यादा कर लेना
सूरज से कम नहीं उलाहना,
धूप लू को रिश्वत में बाँटना।
कट रहे पेड़ जब यहाँ-वहाँ,
छाया की क्या करें कामना
9 जून 2007
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