|  | एक और 
                  वैलेन्टाइन्स डे एक और भी 
                  दिन गयामुझे तनहा छोड़।
 दे गया
 कुछ धूमिल सी यादें
 गुज़रे ज़माने की
 जहाँ कुछ पत्र थे
 तो कुछ प्रेम-पत्र
 और कुछ,
 किताबों के बीच दबे हुए फूल
 फैली थी स्याही वहाँ
 फूलों के दबाने से
 और दे रही थी एक अजीब सी गंध।
 पत्रों में शिकायतें थीं
 तो प्रेम-पत्रों में ढेरों सवाल
 धूमिल से, मलिन से
 कुछ दे गए पल भर की खुशी
 और कुछ,
 एक कतरा आँसू
 बस ऐसे ही उलझा रहा
 सारा दिन और सारी रात
 अपने अतीत से जुड़े
 और बिखरे-सिमटे
 सवालों के साथ
 हाँ! कुछ ऐसे यादगार रहा
 एक और वैलेन्टाइन्स डे
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