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                  दस्तावेजों की दुनिया
 बरसो से बन्द पडे
 मेरे दस्तवेजो की दुनिया
 बड़ी ही दिलकश है
 एक उम्र का अनुभव है
 इनमे...
 
 एक अर्थहीन पीडा
 यहाँ,
 पन्नोँ मे साँस लेती है...
 कितनी ही स्मृतियो के
 बीज बोये हैं मैने
 इंनके आंगन मे....
 
 अनुभवओ की मिठास है यहाँ
 और....
 जीवन की दहकती हुई
 ख़ुशियो और गमो के
 कितने कशीदे गढे हैं इनमे...
 
 मेरी अपनी जमीन है यहाँ
 एक भाषा...
 जहाँ..
 प्रेम, स्वप्न और प्रार्थना का जिद्दीपन है
 जो अभी अभी इतिहास हुआ लगता है....
 
 कितनी ही उदास शामे
 गुजारी है मैने
 उन खामोश टिमटिमाते हुए
 सितारो के साथ....
 
 मेरी वेदना के सघन वन मे
 कितनी पक्त्तियाँ हैं,
 जो सपाट सी हैं
 पर नजर नही आती....
 
 दुनिया को बदल डालने की
 धारदार अभिव्यक्ती भी है
 और...
 कितने ही चेहरो की
 शराफत मे छिपी हुई
 कुटिलता के बयान भी....
 
 मेरी अंतह्करण की हूक से
 निकले हुए वह तेज़ाबी शब्द
 जिनमे...
 चीख, करुणा, बेबसी
 और...
 चेतना के विराट सौन्दर्य से
 दूर ले जाता अन्धकार है...
 
 किंतने ही पन्ने हैं यहाँ...
 जो खामोश रखकर भी
 खामोश नही हैं...
 
 हाँ,
 व्यथा है...
 मेरे इन दस्तावेजॉ मे
 एक अ-नायक की..
 जिसे...
 अपने ही घर की तलाश है...
 २० अप्रैल २००९ |