अनुभूति में
राज जैन की रचनाएँ -
अंजुमन में-
आदमी
आ के मिलिये
एक लम्हा ज़िन्दगी़
कल शहर था
तुमसे मिल कर
पहली बार
मुस्कुराने की चाहत
यह ख़लिश
संकलन में-
वर्षा मंगल -
बिरहा
ज्योति पर्व -
दिये जला देना
गांव में अलाव-ठिठुर
ठिठुर कर
शुभकामनाएँ -आज
झिझको
प्रेमगीत-
मीठी उलझन
हाइकू में
नयी कामना
काव्यचर्चा में
सच
सादगी और सरलता |
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कल शहर था
मौत का जलसा हुआ है कल शहर था।
दर्द का दरिया हुआ है कल शहर था।
ज़िन्दगी थी क्या खुशी थी
रौशनी थी।
आज अन्धेरा हुआ है कल शहर था।
मेरा भाई, तेरी बहना, उसका
मुन्ना।
सब का कोई खो गया है, कल शहर था।
अश्क भी आँखों में, अब बाकी
नहीं हैं।
डर सा यों दुबका हुआ है कल शहर था।
बुझ गई हैं भुज के, घर घर
में शमाएँ
हर तरफ फैला धुआँ है, कल शहर था।
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