आदमी
थोड़ा सच्चा थोड़ा खोटा
आदमी
हो गया है कितना छोटा आदमी
खुद के रुख़ पर और कभी तो
रूह पर
ओढ़ता है एक मुखौटा आदमी
ज़िन्दगी़ भर ज़िन्दगी़ को
खोजता
खुद को पाता और खोता आदमी
ढोकरें खाता सँभलता हर दफ़ा
और फिर सपने संजोता आदमी
ख्वाब, ख्वाहिश, हसरतें और
बेबसी
कितने सारे बोझ ढोता आदमी
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