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अँधेरों की फ़ितरत
एक अकेले पर
कहाँ कोई किसी से
दिल से मिलिए
साथ चलना है

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रिक्त स्थान- चार क्षणिकाएँ

माहिया में-
खुश्बू का हरकारा

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कहीं आँखों का सागर
कहीं मुश्किल
कोई दावे की खातिर
रोटी या फूलों के सपने
हिज्र में भी गुलाब

माहियों में-
माहिये

  दिल से मिलिए

दिल से मिलिए तो, याराना बनता है
तार जुड़ें बेमेल, तमाशा बनता है

पेट काटकर तिनका-तिनका जोड़ें तब
सिर ढकने को एक ठिकाना बनता है

पंछी पत्ते फूल, छोड़ते हैं जब साथ
बूढ़े पेड़ का, मौन सहारा बनता है

वक्त के एक इशारे पर बदलें मंज़र
खुशी की आँखों में ग़म खारा बनता है

कुछ तो बात है हममें, सब यह कहते हैं
यूँ ही नहीं हर शख़्स दीवाना बनता है

धुंध भले दीवार बने, रस्ता रोके
सूरज का तो फिर भी आना बनता है

१ अक्टूबर २०२३
 

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