अनुभूति में
परमजीत कौर रीत की रचनाएँ
नये माहिया में-
खुश्बू का हरकारा
अंजुमन में-
कहीं आँखों का सागर
कहीं मुश्किल
कोई दावे की खातिर
रोटी या फूलों के सपने
हिज्र में भी गुलाब
माहियों में-
माहिये
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कोई दावे की खातिर
कोई दावे की खातिर जी रहा है
या फिर वादे की खातिर जी रहा है
किसी के हाथ में सब चाभियाँ हैं
कोई ताले की खातिर जी रहा है
उसी ने जिन्दगी का लुत्फ उठाया
जो खुद जीने की खातिर जी रहा है
जड़ों को क्यों न हो उम्मीद उससे
जो इक पत्ते की खातिर जी रहा है
लदा है याद पर परिवार भूखा
वो हर दाने की खातिर जी रहा है
तेरी कमजोरियाँ मैं जानती हूँ
अदू मौके की खातिर जी रहा है
१ जून २०१२ |