अनुभूति में
परमजीत कौर रीत की रचनाएँ
नये माहिया में-
खुश्बू का हरकारा
अंजुमन में-
कहीं आँखों का सागर
कहीं मुश्किल
कोई दावे की खातिर
रोटी या फूलों के सपने
हिज्र में भी गुलाब
माहियों में-
माहिये
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रोटी या फूलों के सपने
रोटी या फूलों के सपने
पत्थर में भी पलते सपने
बेशक़ रहें अधूरे सपने
पर जिंदा रख थोड़े सपने
छू जाते हैं आसमान भी
मत कहना 'हैं छोटे सपने'
थकी पीठ को राहत दो पल
पेट को चंद निवाले सपने
खेल सियासत का मुफलिस को
लाखों रोज परोसे सपने
फुर्सत में खुद से मिलना था
बरसों बाद खंगाले सपने
क्या पाया क्या 'रीत' गँवाया
जाने जिसने पाले सपने
१ जून २०१२ |