अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में परमजीत कौर रीत की रचनाएँ

नये माहिया में-
खुश्बू का हरकारा

अंजुमन में-
कहीं आँखों का सागर
कहीं मुश्किल
कोई दावे की खातिर
रोटी या फूलों के सपने
हिज्र में भी गुलाब

माहियों में-
माहिये

 

 

 

  कहीं मुश्किल

कहीं मुश्किल कहीं आसान हूँ मैं
किताब-ए-जीस्त का उनवान हूँ मैं

मेरे हाथों में रिश्तों का खजाना
खुदा का शुक्र है धनवान हूँ मैं

दवाओं की ब-निस्बत बस दुआ दो
घड़ी भर का फकत अरमान हूँ मैं

न पीछा छोड़ता है कब्र तक जो
किसी मजबूर का अहसान हूँ मैं

कई कमियाँ हैं मुझमें, सच यही है
समझ मत देवता, इंसान हूँ मैं

मेरी रग़-रग़ से वाक़िफ है अगर वो
न समझे उससे भी अनजान हूँ मैं

भरोसा 'रीत' रख मैं सादगी हूँ
तेरे क़िरदार की पहचान हूँ मैं

१ जून २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter