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अनुभूति में डॉ. शैलेश गुप्त वीर की रचनाएँ-

क्षणिकाओं में-
नौ क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
उम्र मेरी कटी है
ज़ख़्म पर ज़ख़्म
झूठ गर बेनक़ाब
बात बात में
मन भीतर
मन में बोझ
महँगाई की मार

छंदमुक्त में-
आठ छोटी कविताएँ

संकलन में-
धूप के पाँव- गर्मी - दस क्षणिकाएँ
नया साल- साल पुराना
         नये वर्ष की कामना

अशोक- जीवन रहे अशोक
देवदारु- देवदारु - दस क्षणिकाएँ
संक्रांति- संस्कृति देती गर्व
शिरीष- शिरीष दस क्षणिकाएँ
होली है- राग रंग का पर्व‎

 

नौ क्षणिकाएँ

१-
पीड़ा, दंश, उपेक्षा
पग-पग संघर्ष
फिर भी बाँचती
प्रेम के गीत
सदियों से कोई नहीं लिख सका
औरत की जीत!

२-
शेष दो लाशों का
कोई दावेदार नहीं निकला
दरअसल कौन हिन्दू था
कौन मुस्लिम
यह पता ही नहीं चला!

३-
भेदभाव के सवाल पर
कुत्तों ने कहा-
"नहीं, हम दंगे नहीं करेंगे
आदमी नहीं बनेंगे!"

४-
मौसम की
आवारगी के बीच
सूरज आता-जाता रहा
'टेबल-लैम्प'
साथ निभाता रहा!

५-
मुस्कुरा उठे गीत
लौट आया सावन
गहन नीरवता को चीर गयी
उसकी वर्षों पुरानी हँसी!

६-
बात
बहुत गहरी हो गयी
फुटपाथ पर लेटी
पगली
इकहरी हो गयी!

७-
अपनी स्वतन्त्रता
औरों की परतन्त्रता
उनका मूल मन्त्र है
कुर्सियों का जनतन्त्र के ख़िलाफ़
सदियों से षड़यन्त्र है!

८-
माँ-बाप
बच्चों की हैसियत बनाते हैं
और आजकल बच्चे
माँ-बाप को
उनकी हैसियत बताते हैं!

९-
सन्नाटे का अजगर
कमसिन देह
निगल जाता है
बिकाऊ मीडिया
बस शोर मचाता है!

१ अक्तूबर २०१८

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