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देवदारु: दस क्षणिकाएँ
 


देना सीखें
बिना कुछ लिए
आओ
देवदारु-सा जिएँ!


देवदारु के पेड़
क्या-क्या
बाँटते रहे
और हम
जड़ें काटते रहे!


देवदारु के
पौराणिक सन्दर्भ
तो गिनाते रहे
किन्तु
धरती से
स्वर्ग मिटाते रहे!


उधर
शीश ताने खड़े
देवदारु
दहक रहे हैं
इधर हम
रुपयों की खनक से
चहक रहे हैं!


अभी वक़्त है
जन-जन को
समझाना होगा
सुनहरे कल के लिए
देवदारु
बचाना होगा!


जब
दानवता
आकाश छू रही है
देवदार
उठें और कितने ऊँचे
मही पूछ रही है!


सुविधाभोगी मानव
जब आरा चलाता है
देवदारु
अपने होने पर
बहुत पछताता है!


अहंकार में
नहीं
फूलते हैं
देवदारु
आसमान चूमते हैं!


देवदारु
मानवता का
पाठ पढ़ाते हैं
मौन होकर भी
इंसानों को
सिखाते हैं!

१०
देवदारु
खड़े रहे अटल
निर्लिप्त भाव-से
और हम
काटते रहे
उनकी बाँहें
दुर्भाव-से!

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'   
 
१५ मई २०
१६

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