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अनुभूति में प्रभु दयाल की रचनाएँ-

कुंडलिया में-
छह कुंडलिया राजनीति से

गीतों में-
कुछ बात करें चुपके चुपके
खोल दूँगी खिड़कियाँ
भीतर की तनहाई
सुबह सुबह ही भूल गए
सूरज फिर से हुआ लाल है
हम नंगे पाँव चले आए

अंजुमन में-
घी शक्कर का रोटी पुंगा

दोनों खुश हैं
पी लो पीड़ा
बंदर बिगड़ते जा रहे हैं

क्षणिकाओं में-
दस क्षणिकाएँ

  

 

सूरज फिर से हुआ लाल है

सूरज फिर से हुआ लाल है
नभ ने फेंका इन्द्रजाल है
स्वागत में
मुस्काए गुलमोहर
ठिल ठिल हँसने लगा ताल है।
1
लहरों की
डाले गलबहियाँ
सीढ़ी करे प्रेम की बतियाँ
एक टक लीला लगीं देखने
जल में डूबीं सभी बटैयाँ
1
पेड़ किनारे करें ठिठोली
तट के बजने लगे गाल हैं।
1
पनघट पर
कह रही सहेली
जीवन एक अनबूझ पहेली
आज छोड़कर चले गये वे
जिनके संग जनम भर खेली
1
बस यादें ही शेष रह गईं
लगती कोई नई चाल है।
1
बने बनाए
मिटे घरौंदे
पल में हो गये सपने औंधे
जिनको शीश चढ़ाया हमने
वही फूल पैरों ने रौंदे
1
रंग बदला है गिरगिट जैसा
मौसम का बेतुका हाल है।

३ अक्तूबर २०११

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