अनुभूति में
प्रभु दयाल की रचनाएँ-
कुंडलिया में-
छह कुंडलिया राजनीति से
गीतों में-
कुछ बात करें चुपके चुपके
खोल दूँगी खिड़कियाँ
भीतर की तनहाई
सुबह सुबह ही भूल गए
सूरज फिर से हुआ लाल है
हम नंगे पाँव चले आए
अंजुमन में-
घी शक्कर का रोटी पुंगा
दोनों खुश
हैं
पी लो पीड़ा
बंदर बिगड़ते जा रहे हैं
क्षणिकाओं
में-
दस क्षणिकाएँ |
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हम नंगे पाँव
चले आए
टेर तुम्हारी सुनकर ही
हम तन से मन से अकुलाए
फूल पाँवड़े ठुकराकर
हम नंगे पाँव चले आए
बिसरी स्मृतियों के घट से
यादों की बूँद छलक आई
आँसू के पात्र लिए कर में
आँखों के द्वार पलक आई
नगरी की चकाचौंध छोड़ी
अपने घर गाँव चले आए
पैरों के नीचे धूप जली
तलुए मौसम के झुलसाए
फिर भी यादों के घूँघट से
दो नयन तुम्हारे मुस्काए
बैभव के सभी छत्र छोड़े
आँचल की छाँव चले आए
खेत गाँव और गली गली
हम संग साथ में पले बढ़े
दु:ख सुख सुदिन दुर्दिन सब में
हम संग साथ में रहे खड़े
जो जनम जनम से थी मेरी
वापिस उस ठाँव चले आए
३ अक्तूबर २०११ |