अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

आभास

आज लगता कुछ हुआ है
पास के घर में
चीख का आभास था
हर सांस के स्वर में

1

प्रभु दयाल
की दस क्षणिकाएँ

ईमानदारी

काश्मीर से कन्याकुमारी तक
ढूँढ ढूँढ कर हारी
कहो प्रिय कहाँ रहती है
ईमानदारी
मजा

वैसे तो देश का आदमी
दाल रोटी खाता है
पता नहीं लोगों को
क्यों पैसे खाने में ज्यादा
मजा आता है
 
स्वदेशी

उन्होंने कहा
हम स्वदेशी अपना रहे हैं
केवल अपने
देश को खा रहे हैं
नाम रोशन

गरीबों का
भरपूर शोषण किया,
इस तरह नाम
रोशन किया
सत्ता

मैंने कई लोगों को मारा है,
हजारों को अपाहिज
लाखों को कर दिया बेसहारा है
मुझॆ क्षिति पूर्ति भत्ता चाहिए
हुजूर मुझे सत्ता चाहिये
 
शोर का जोर

आज की धरती बड़ी कमजोर है,
सिर्फ छत की बाजुओं मैं जोर है
चुप्पियों को और चुप
करते हैं लोग‌,
आज केवल शोर का ही शोर है
बेबफाई

देखी ऊपर वाले की बेबफाई?
आदमी को तो
गधा कह सकते हो,
गधे को आदमी नहीं कह सकते
मेरे भाई

उनकी सुरुचि

भैयाजी सुरुचि सम्पन्न हैं,
उनकी अभिनय कला धन्य है
कल जिससे हाथ मिलया था,
आज उसके पैर काट आये हैं,
इस तरह हाथ और पैर की दूरी
पाट आये हैं

प्रण‌य‌ निवेद‌न‌

व्यथित‌ ह्र्द‌य‌ की
त्व‌रित‌ म‌र‌म्मत‌
क‌रो बालिका,
मैं हूँ
ध्व‌स्त‌ स‌ड़क सा
तुम‌ न‌ग‌र‌ पालिका

११ अक्तूबर २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter