अनुभूति में
प्रभु दयाल की रचनाएँ-
कुंडलिया में-
छह कुंडलिया राजनीति से
गीतों में-
कुछ बात करें चुपके चुपके
खोल दूँगी खिड़कियाँ
भीतर की तनहाई
सुबह सुबह ही भूल गए
सूरज फिर से हुआ लाल है
हम नंगे पाँव चले आए
अंजुमन में-
घी शक्कर का रोटी पुंगा
दोनों खुश
हैं
पी लो पीड़ा
बंदर बिगड़ते जा रहे हैं
क्षणिकाओं
में-
दस क्षणिकाएँ |
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पी लो पीड़ा
पी लो पीड़ा नहीं जहर है
बस छोटा या बड़ा शहर है
धूप छाँव आती रहती है
इसको कहते नहीं कहर है
शामें रोज हुआ करतीं हैं
सदा नहीं रहती दोपहर है
पल में गरमी बढ़ जाती है
क्षण में आती शीत लहर है
एक ओर है बड़ी हवेली
एक ओर बस टूटा घर है
जहाँ फाँस लेता है दल दल
वहीं शांति देता निर्झर है
२७ जून २०११ |